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उल्लू -ले: गाना या बीजेपी सरकार पर निशाना ?

14 जुलाई को अनुराग बासु की फिल्म जग्गा जासूस रिलीज़ होने वाली है. अरिजीत सिंह और निकिता गाँधी के सुरों से सजा और संगीतकार प्रीतम द्वारा संगीतबद्ध किया गया गाना उल्लू-ले अभी हाल ही में रिलीज़ हुआ है. वैसे सुनने में तो ये गाना बड़ा सुरमयी है परन्तु अगर कोई इसके बोलों पर ध्यान दे तो ये गाना कम और बीजेपी सरकार की आलोचना ज़्यादा लगती है.  गौर फरमाइए.....

उल्लू -ले....
(अब ये भी बताने लायक चीज़ है की उल्लू-ले, उल्लू-ले किसके लिए कहा जा रहा है ?)

जाना ना हो जहाँ वहीँ जाता है, दिल उल्लू का पठ्ठा है. 
फूटी तक़दीर क्यों आज़माता है, दिल उल्लू का पठ्ठा है.
(इन पंक्तियों से कवि देश में लगाए जा रहे कई तरह की पाबंदियों पर निशाना साधना चाह रहा है.  इतने जतन करने के बावजूद, फूटी किस्मत की वजह से कई बार सरकार बैकफुट पर आ रही है. )

बे सर पैर की हैं इसकी आदतें, आफत को जान के देता है दावतें. 
झट से आता है, चुटकी में जाता है, दिल सौ-सौ का छुट्टा है. 
(डॉ. सम्भित पात्रा, साक्षी महाराज, गिरिराज सिंह और कैलाश विजयवर्गीय जैसे नेताओं की वजह से पार्टी को कई बार आफत मोल लेना पड़ रहा है. इस लिस्ट में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह नए ज्वाइन हुए हैं. सौ-सौ के छुट्टे वाले लाइन से तो कवि ने महंगाई और डेमोनेटिज़ेशन पर एक साथ प्रहार किया है. )

हम्म... कंफ्यूज है... दोस्ती पे इसे ऐतबार... आधा है,
रंग में दोस्ती के जो भंग घोल दे, इश्क़ का भूत सर पे सवार आधा है,
निगल सके न ही उगल सके. 
(वक़्त की ये नजाकत है की कौन दोस्त है और कौन दुश्मन? ये पता लगाना मुश्किल है. पार्टी के कुछ बड़बोले नेताओं की हरकतें ना तो निगलते बन रही है और ना ही उगलते. सत्ता की लालसा के कारण मोदी जी अपने और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की छवि में काफी गैप बनाये जा रहे हैं. आडवाणी जी कहाँ  तो राष्ट्रपति बनने की आस लगाए बैठे थे पर वो अब पूरा होता नहीं दिख रहा.)

संगमरमर का बंगला बनाता है, दिल अकबर का पोता है. 
ओ... जाना न हो जहाँ वहीँ जाता है, दिल उल्लू का पठ्ठा है. 
(ये लाइनें शायद सिर्फ चुटकी लेने के उद्देश्य से लिखी गई हैं. कवि शायद बीजेपी सरकार को सेकुलरिज्म के मुद्दे पर चिढ़ाना चाहता हो. भगवान् जाने ! ) 







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